झारखंड के ऐतिहासिक हरिणा मेला की तैयारियां पूरी कर ली गई हैं। यह परंपरागत मेला आगामी 15 जून 2025 से शुरू होने जा रहा है। पहले इसे हरिणा पर्व के रूप में मनाया जाता था, लेकिन अब यह एक बड़े मेले का रूप ले चुका है।
लोककथाओं के अनुसार, करीब 400 साल पहले हरिणा में बाबा भोलेनाथ का आविर्भाव और प्रचार एक गाय के माध्यम से हुआ था। इसके बाद से 1856 से हरिणा बाबा की पूजा एक झोपड़ी में शुरू हुई, जो आज तक लगातार जारी है।
समय के साथ इस धार्मिक स्थल ने तीर्थ का रूप ले लिया है। तीन वर्ष पूर्व बाबा का डेरा पक्के भवन में बना दिया गया। प्रतिदिन बाबा की पूजा होती है, लेकिन सोमवार को श्रद्धालुओं की भीड़ विशेष रूप से अधिक होती है। सावन के महीने में तो यह पूरा परिसर भगवा रंग में रंगा नजर आता है।
हर साल जेठ संक्रांति, जिसे रज संक्रांति भी कहा जाता है, के अवसर पर हरिणा पर्व और मेला का आयोजन होता है। यह मुक्तेश्वर धाम हरिणा का वार्षिक उत्सव भी है। मुक्तेश्वर धाम परिसर में बाबा भोलेनाथ के मुख्य मंदिर के अलावा काली मंदिर, गणेश मंदिर, हरि मंदिर, माँ पौड़ी मंदिर, हनुमान मंदिर, गुफा मंदिर, जाहेर थान, यज्ञशाला, विवाह मंडप, धूनी कुंड, बलिथान, मोहन बाबा समाधि मंदिर और एक आकर्षक प्रवेश द्वार भी बना हुआ है।
इस वर्ष मेला 14 जून की रात जागरण से शुरू होगा। साथ ही जाम डाली, गोरियाभार, और छऊ नृत्य जैसे सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाएगा। 15 जून को संक्रांति के दिन मूल पर्व मनाया जाएगा। सुबह श्रद्धालु भगता पुकुर में स्नान कर बाबा के दरबार पहुंचेंगे। इस दिन करीब दस हज़ार श्रद्धालु बाबा की पूजा में भाग लेंगे।
पहले पाठ भक्ता और फिर कतार में बाकी श्रद्धालु पूजा अर्चना करेंगे। इस दिन रजनी फुड़ा और आगून माड़ा की भी परंपरा निभाई जाएगी। यही दिन मेले की शुरुआत का भी होता है, जो सप्ताहभर तक चलेगा।
इस पावन मौके पर सिर्फ झारखंड ही नहीं बल्कि ओडिशा, पश्चिम बंगाल और बिहार से भी बड़ी संख्या में श्रद्धालु बाबा की पूजा करने, मन्नतें मांगने और मेले का आनंद लेने हरिणा पहुंचते हैं।
हरिणा अब भक्ति, आस्था और धार्मिक पर्यटन का प्रमुख केंद्र बन चुका है। इसी तीर्थस्थल की ऐतिहासिक और धार्मिक महत्ता पर आधारित "महातीर्थ मुक्तेश्वर धाम" नामक पुस्तक भी लिखी गई है, जो श्रद्धालुओं के लिए एक मार्गदर्शिका का काम करेगी।